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________________ सतीर्थंकर पूजा भाषा । क्षीरोदधिसम नीरसों (हो) पूजों तृषा निवार ॥ सीमन्धर जिन आदि दे, बीस विदेह मँझार ॥ श्री जिनराज हो, भव तारण तरण जिहाज ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो जन्ममृत्युविनाशनाय जलं ॥ (इस पूजा में यदि वीस पुअ करना हो तो इस प्रकार मन्त्र बोलना चाहिये | ) ॐ ह्रीं सीमन्धरयुग्मंधर- बाहु-सुबाहु सुजात स्वयंप्रभ-ऋषभानन अनन्तवीर्य्य-सूरप्रभ- विशालकीर्ति- बज्रधर-चन्द्रानन- चन्द्रबाहुभुजगम-ईश्वर-नेमिप्रभ-वीरषेण-महाभद्र-देवयशाऽजितवीर्य्येतिविप्रतिविद्यमानतीर्थंकरोभ्यो जन्ममृत्युविनाशाय जलं ॥ १ ॥ तीन लोकके जीव, पाप आताप सताये । तिनकों साता दाता, शीतल वचन सुहाये ॥ बावन चन्दनसों जजू (३), भ्रमन तपन निरवार | सीमं ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थं करेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं ॥ ३२३ यह संसार अपार, महासागर जिनस्वामी ! तातें तारे बड़ी भक्ति-नौका जग नामी ॥ तंदुल अमल सुगंधसों (हो) पूजों तुम गुणसार । सीमं० ॥३॥ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो अक्षय पदप्राप्तये अक्षतान् ॥ भविक - सरोज- विकाश, निद्यतमहर रविसे हो । जतिश्रावक आचार कथनको, तुम्ही बड़ेहो ॥ फूलसुवास अनेकसों (हो), पूजों मदन प्रहार | सोमं० ॥४॥ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थ करेभ्यो कामवाण विध्वंसनायपुष्पं ॥ कामनाग विषधाम, नाशको गरुड़ कहे हो ।
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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