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________________ ३०४ जिनवार्णो संग्रह। भी है-५ पांचवें धनदेव तेरा पुत्र सो मेरा भी पुत्र ताको तू स्रो तातें मेरी पुत्रवधु भी है-६ छ? मैं धनदेवकी स्त्री तू धनदेवकी माता सो मेरी सासू भी है। इस प्रकार वेश्या छ नाते सुनकर चित्तमें विचारने लगी त्यो ही तहां धनदेव आया ताकों देखि कमला बोली कि तुम्हारे साथ भी मेरे छह नाते हैं सो सुनो-१ प्रथम तो तूं और मैं इसी वेश्याके उदर सों जुगल (उपजे सो मेरा भाई है-२ दूजे तेरा मेरा विवाह भया सो मेरा पति भी है-२ तीजे बसन्ततिलका मेरी माता ताका तू भरतार तातें मेरा पिता भी है-४ चौथे बरुण तेरा छोटा भाई सो मेरा काका भया ताका तू पिता सो काकाका पिता सो मेरा दादा भी भया-५ पांचव मैं बसन्ततिलकाकी सौति अरु तू मेरा सौतिनि पुत्र तातें तू मेरा भी पुत्र है-६ छ? तू मेरा भरतार तातें तेरी माता बसन्ततिलका मेरी सासु भई और सासू के तुम भरतार तातें मेरे ससुर भी भये । इस प्रकार एक ही जन्ममें :इन प्राणियोंके परस्पर अठारह नाते भये ताको उदाहरण (दृष्टांत) कहा कि इस भांति इस संसार की विचित्र विडंबना है इसमें कुछ सन्देह नहीं। इस प्रकार अठारह नातेका व्योरा समाप्त । (३०) चौबीस तीर्थकरोंके चिन्ह । १ ऋषभनाथके बैल २ अजित नाथके हाथी ३ संभवनाथके घोड़ा ४ अभिनन्दन नाथके बन्दर ५ सुमति नाथके चकवा ६ पद्म प्रभके कमल ७ सुपार्श्वनाथके सांघिया ८ चन्द्रप्रभके चन्द्रमा ८ पुष्पदन्तके नाकू १० शीतलनाथके कल्पवृक्ष ११ श्रेयांसनाथ
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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