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________________ अठारहनाते की कथा । ३०३ पाये बहुरि काश्यपी ब्राह्मणीका जीव धनदेव के संयोग तं वरुण नाम पुत्र भया इस प्रकार पूर्वभवका उज्जयनी नगरीविषै सकल वृतान्त स ुनने से कमला को पहिले जन्म का जातीस्मरण हुआ तब वह बसन्ततिलकाके घर गई तहां वरुण पालनेमें झूले था सो ताको कहती भई कि हे बालक ! तेरे साथ मेरे छे नाते हैं सो सुन १ प्रथम तो मेरा भरतार जो धनदेव ताके संयोगतें तू पैदा भया सो मेरा भी ( सौतेला) पुत्र है - २ दूजे धनदेव मेरा भाई है ताका तूं पुत्र तातैं मेरा भतीजा भी है ।- -३ तीजे तेरी माता बसन्ततिलका सो ही मेरी माता है तिस तैं सहोदर भी है४ चौथे तू मेरे भरतार धनदेवका छोटा भाई तिसकारण मेरा देवर भी है --- ५ पांचवें धनदेव मेरी माता बसन्ततिलकाका भरतार है तातें धनदेव मेरा पिता भया ताका तू' छोटा भाई तातै मेरा चाचा भी है - ६ छठयें मैं बसन्ततिलकाकी सौतिन तातें धनदेव मेरा पुत्र ताका तू पुत्र तातें तू मेरा पोता भी है। इस प्रकार वरुणके साथ छह नाते कहतो हती सो बसन्ततिलका तहां आई और कमलाको बोली कि तू कौन है सो मेरे पुत्रों इस प्रकार छे नाते सुनावै है ? तब कमला बोली तेरे साथ भी मेरे छह नाते हैं सो सुन १ प्रथम तो तू मेरी माता है क्योंकि धनदेवके साथ तेरे ही उदरसे युगल उपजी हूं - २ दूजे धनदेव मेरा भाई ताकी तू स्त्री तातें मेरी भौजाई भी है— तीजे तू मेरी माता ताका भर्तारं धनदेव मेरा पिता भया ताकी तू माता तातें मेरी दादी भी है४ चौथे मेरा भरतार धनदेव ताको तू स्त्री तस्तें मेरी सौतिन -
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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