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________________ बाहमासा राजुला पौष मास ( झड़ो) सखि लगा महीना पोह ये माया मोह जगत्से द्रोह र प्रीत करावे ।हरे झानावरणी भान अदर्शन छावे । पर द्रव्यसे ममता हरे तो पूरी पर जु सम्बर करे तो अन्तर टूटै । अस ऊंच नीय कुल नामकी संज्ञा छूटै॥ (झर्व )-क्यों ओछी उमर धरावै । क्यो सम्पतिको बिल गावै । क्यों पराधीन दुःख पावे । जो संयममें चित लावे ॥ (झड़ी)-सखि क्यों कहलावे दीन क्यों हो छवि छीन क्यों विद्याहोन मलीन कहावै । क्यों नारि नपुसक जन्मे कर्म नचावे। वेत. शील शृङ्गार रुलै संसार जिने दरकार नरकमें पड़ना। निर्ने० माघ मास ( झसी) सखि आगया माह बसन्त हमारे कन्त भये अरहन्त वो केवलशानी । उन महिमा शील कुशीलकी ऐसे बखानी । दिये सेठ सुदर्शन सूल भई मखतूल वहां बरसे फूल हुई जयबाणी वे मुक्ति गये अरु भई कलङ्कित राणी ॥ (झर्व)-कीचकने मन ललचाया। दुपदोपर भाव धराया। उसे भीमने मार गिराया । उन किया जैसा फल पाया ॥ (झड़ी)-फिर गया दुर्योधन चीर हुई दिलगीर जुड़ गई भीर लाज अति आवे । गये पाण्डु जुयेमें हार न पार बसावे । भये परगट शासन बीर हरी सब पीर बन्धाई धीर पकर लिये चरना। निर्नम नेम बिन०॥ __फागुन मास ( झरी) सलि माया फाग बड़ भाग तो होरी त्याग अढ़ाही लाग के
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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