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________________ २३२ * जिनवाणी संग्रह * - - विद्युतवर कूटसे शीतलनाथ तीर्थ कर एक हजार मुनिसहित मोक्ष गये है औरभी वहांसे अठारह कोडाकड़ी वियालीस करोड़ बत्तीस लाख बियालीस हजार नौसे पांच मुनियोंने मुक्ति पाई है । इस कूटके दर्शनका फल भी एक करोड़ उपवास करनेके बराबर है। दशवें संकुल कूटसे श्रेयांसनाथ तीर्थ कर एक हजार मुनिसहित मोक्ष गये हैं और तथा छयानवे कोडाकोड़ी छयानवें करोड़ छयानवें लाख नवहजार पांच सौ बियालीस मुनियोने और भी वहांसे मुक्ति पाई है। इसकटके दर्शन करनेका फल भी एक करोड़ उपवास करनेके बराबर है। चपापुरसे वासुपूज्य तीर्थंकर हजार मुनिसहित मोक्ष पधारे हैं। सम्मेदशिखरके ग्यारहवे वरिसंवल कृटसे विम. लनाथतीर्थंकर हजार मुनिसहित मोक्ष गये हैं। और छह हजार छहसौ तथा सत्तर कोडाकोड़ो साठ लाख छह हजार सात सौ बियालीस मुनि औरभी मुक्ति गये हैं। इसकूट के दर्शनका फल एक करोड़ उपवास करनेके बराबर है। बारहवें स्वयंभू कृटसे अनंतनाथ तोर्थ कर हजार मुनिसहित मोक्ष गये हैं। इनके सिवाय पचहत्तर हजार, सातसौ तथा छयानवे कोडाकोड़ी सत्तर लाख सत्तरहजार सात सौ मुनि और भी मोक्ष गये हैं। इस कूटके दर्शनका फल एक करोड़ उपवास करनेके तुल्य है । तेरह, सुदत्तबर कूटसे धर्मनाथ तीर्थंकर आठसौ एक मुनिसहित मोक्ष प्राप्त हुए हैं। तथा इसी कूटसे उन्नीस कोडाकोड़ी उन्नीस करोड़ नौ लाख नौ हजार सात सौ पंचानवे मुनि और भी मुक्त
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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