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________________ # श्रीसम्मेदशिखरमाहात्म्य * २३१ तीस कोड़ा कोड़ी सत्तर करोड़ सत्तर लाख बियालीस हजार सात सौ मुनियोंके सहित निर्वाण प्राप्त हुए हैं. इस कूटके दर्शन करनेका फल एक लाख उपवासके फलके तुल्य है । बौथे अविचलकूट से सुमतिनाथ तोर्थंकर एक कोड़ाकोड़ी चौरासी करोड़ बहत्तरलाख इक्यासी हजार सात सौ मुनियोंसहित मोक्ष पधारे हैं । इस कूटके दर्शन करनेका फल एक करोड़ उपवास करने के समान है। पांचवें मोहनकट से पद्मप्रभ तीर्थंकर निन्यानवे कोड़ाकोड़ी सत्तानवे करोड़ सत्तासी लाख बियालोस हजार सातसौ मुनिसहित मोक्ष प्राप्त हुए हैं 1 इस कूट दर्शनका फल एक करोड़ उपवास करनेके तुल्य है। छठे प्रभास कूटसे सुपाश्वनाथ तीर्थंकर चौरासी कोड़ाकोड़ी चौरासी करोड़ बहसर लाख सात हजार सात सौ व्यालोस मुनिसहित मुक्ति गये हैं । इस कूटके दर्शन करने का फल बत्तीस कोड़ाकोड़ो उपवासके बराबर है। सातवें ललितकटसे . चन्द्रप्रभ तीर्थंकर हजार मुनिसहित मोक्ष प्राप्त हुए हैं । इनके सिवाय वहांसे चौरासी अरब बहत्तर करोड़ अस्सीलाख चोरासी हजार पांच सौ पचपन मुनि और भी मुक्ति गये हैं I इस कूटके दर्शन करनेता फल सोलहलाख उपवासके तुल्य है। आठवें सुप्रभ कुरसे श्रीपुष्पदन्त तीर्थ कर हजार मुनिसहित मुक्ति पधारे हैं तथा निन्यानवें करोड़ नवलाख सात हजार बार सौ अस्सी मुनि और भी वहांसे मुक्ति गये हैं । इस कूटके दर्शन करनेका फल एक करोड़ उपवासके बराबर है। नवमें
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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