SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ अथ मुनि श्रीहंस विजयजी रुत ॥ ॥चतुर्विशति जिनस्तुतिः स्तवन रत्नाकर ग्रंथ। ॥ अनुष्टुब् वृत्तम् ॥ स नानेयो जिनो जीया,दूरुस्थटषलक्षणः॥ श्रीशत्रुजयतीर्थस्य, मस्तके मुकुटोपमः॥१॥ अर्थः-शोलायमान शत्रुजयनामना तीर्थना म स्तक उपर मुकुटसमान अने साथलमां वृषजना चिन्ह वाला एवा नाजिराजाना पुत्र जे ऋषनदेव नगवान् ते, जय पामो॥१॥ वन्देऽहम जितं देवं, लीलया जितमन्मथम् ॥ कर्मवल्लीविनाशाय,कुगरसदृशं विनुम् ॥२॥ अर्थः-लीलायें करी कामदेवने जीतनार अने कर्म रूपी वेलने नाश करवामां कुगर (कुवाडा) समान समर्थ,अजितनाथ नगवानने हुँवंदना करुं बुं ॥२॥ श्रीमत्संनवनाथाय, नवनात्तिहराय च ॥ तृतीययोगिनायाय,नमो विश्वैकनानवे॥३॥ अर्थः-त्रण जुवननी पीडाने हरनार त्रीजा एवा अने
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy