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________________ (३६) सेवो जिन तुमें नाइ, करो न उगाई कांई, वरो ने आनंद रे॥ मु०॥ ३ ॥ देवनी करीने सेव, दूर करी खोटी टेव, ध्यान धरो नित्यमेव, प मानो नंद रे ॥ मु॥४॥ प्रावृट कालने ल दी, हंस जाय सर बही, तिमतजीजावो मही, जिहां प्रनु चंद रे॥मु०॥५॥इति ॥ ॥अथ एकविंशति श्रीनमिजिनस्तवनं ॥ ॥राग माढ ॥ थारी गई रे अनादिनी निंद जरा, ट्रंक जोवो तो सही ॥ ए देशी॥प्रनु व प्रानंदन चंद नमी, जिन जोवो तो सदी ॥ जो वो तो सही,महारा साहिब जोवो तो सही॥प्र नु० ॥ ए आंकणी॥ ज्ञानवंत नगवंत, ध्यान मां लेवो तो सही। मेरा सादिब लेवो तो सही ॥तुम विण कुण जे आधार, मुझे टुंक कदेवो तो सही॥ मे ॥प्र०॥१॥सकलकलाकला प तुमें, प्रनु देवो तो सही॥मे ॥ प्रनु ज्ञात तत्त्व तीन तत्त्व रूप, यो मेवो तो सही।मे॥
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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