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________________ __ (३५) होणसे, दरिरोग दे दोला॥ लुप्तशिश्न कुकर्म सें, बन गया दर नोला॥ मल्ली०॥४॥तिण कारण नही देव ए, इम बदु जन बोला ॥ मो हराय प्रतिमल्ल दे, मल्लिनाथ एकीला ॥ मल्ली जी० ॥५॥प्रनु दर्शनथी पामवा, अनुनव रस चोला ॥ तुम पद पद्मसरोजमां, करे दं स कल्लोला ॥ मनीजि०॥६॥ इति॥ ॥अथ विंशति मुनिसुव्रतजिनस्तवनं॥ ॥राग पीलु ॥ तीर्थ जारो अब,करीयें न विक टंद, दाख्यो रे जिनंदपद, आनंद नरें रें ॥ए देशी॥ मुनिसुव्रतजिन,नमीन चेतन राय, जाचो रे सुगति गाय, गुण गण रुंद रे ॥ मु नि सु॥ए आंकणी ॥ स्वामी जिनाधीश जो य, नवनय कुःख खोय, जयजयकार होय, क टे कर्म कंद रे॥ मु०॥१॥सेवना प्रनुनी क री, पापपंक परिदरी, शुनपंथ पग धरी, हरो सब फंद रे॥मु०॥२॥ मनमां मगन थाई,
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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