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________________ (१७) ॥५॥ मान महाअजगरना मुखमां, पडियो बुनीरधार ॥ मायाजालयकी बंधाणो, कर्मत णे अनुसार ॥गे जग ॥६॥आ नव परन व हितकारी कांइ, कीयां न काम लगार ॥ति ण कारण सुख लेश न पाम्यो, गयो जन्म न ज दार ॥ो जग ॥७॥ जाण आगल प्र नु शुंबदु कहेवू, जलदी करो नहार ॥ अवगु एसघला नवेखी ने, यो शिवलमीदाता॥॥ ॥अथ तृतीय श्रीसंनवजिनस्तवनं ॥ ॥ हारेकिने देख्या हमेरा स्वाम॥ए देश। ॥संनवजिन गे जगस्वामी, स्वामीजी जिनप द पामी रे॥संनवाए चाल॥ तुम समदेव नदी कोई जगमां, अन्य देव ने कामी रे॥ संनव० ॥१॥ राग द्वेष नही तुऊमां दीसे, मुर्ति मां नदी खामी रे॥ संनव०॥२॥ अपर देव पूजाय धतूरे, तुमें जासुदे सुखधामी रे ॥ सं नव० ॥३॥ संनव नाम सुखसंनव दाता, ज
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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