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________________ (१७) ॥ अथ दितीय श्रीअजितनाथ स्तवन ॥ ॥अब मोदे मागरीयां ॥ ए देशी गेज गतारणहार, अजितजिन, गे जगतारणहार॥ नवदधि पार उतार ॥ अजित ॥ त्रिनुवनना आधार, तुमें प्रनु मंगलना करनार ॥ कर्मरो ग काटण कारण तुमें, वैद्यतणा अवतार ॥गे जग ॥१॥ज्ञानवंत जाणो सदु जगने, तो पण मुक संसार ॥ वीतक जे वीत्युं साहेब, मात पिता परें धार ॥गे जग ॥२॥ बालक नी लीलायुत बालक, ना आगल करे लाड॥ तिम ढुं कहूं सादेब तुझ आगल, मुफ विनती अवधार॥गे जग ॥३॥ दान न दीधुं मुनि जनने बढ. शील न पाल्यं लगार ॥ तपथी तो बढु त्रास धरूं दिल, श्या थारो मुफ दाल ॥गे जग ॥४॥ क्रोध रूप दावानल बली यो, लोन अदी विकराल ॥ वलग्यो ने मुऊ ने शुं करवू, कहो प्रनु दीनदयाल ॥गे जग
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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