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________________ निश्चयनय : कुछ प्रश्नोत्तर ] [८७ 'क्षायिकसम्यक्त्व की अपेक्षा सम्यग्दृष्टि को सिद्ध मानना' - यह शुद्धनिश्चयनय है। और 'सिद्ध समान सदा पद मेरो'- यह परमशुद्ध निश्चयनय है, क्योंकि इसमें सिद्ध के समान सदा ही अपना पद बताया गया है। वह किसी पर्याय की अपेक्षा नहीं बताया गया है, अपितु स्वभाव को अपेक्षा किया गया कथन है। (स) मुक्तिमार्ग के साथ अभेदता स्थापित करने के कारण एकदेशशुद्धनिश्चयनय साधकजीव के ही पाया जाता है। अतः यह चतुर्थ गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक ही समझना चाहिए। इस संदर्भ में बृहद्रव्यसंग्रह का निम्नलिखित कथन उल्लेखनीय है : "कर्तृत्वविषये नयविभागः कथ्यते । मिथ्यादृष्टेर्जीवस्य पुद्गलद्रव्यपर्यायरूपारणामास्रवबंधपुण्यपापपदार्थानां कर्तृत्वमनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण, जीवभावपर्यायरूपाणां पुनरशुद्धनिश्चयनयेनेति । सम्यग्दृष्टेस्तु संवरनिर्जरामोक्षपदार्थानां द्रव्यरूपारणां यत्कर्तुत्वं तदप्यनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण, जीवभावपर्यायरूपाणां तु विवक्षितैकदेशशुद्धनिश्चयनयेनेति । परमशुद्धनिश्चयनयेन तु। "रण वि उप्पज्जइ, ए वि मरइ, बन्धु ण मोक्खु करेइ । जिउ परमत्थे जोइया, जिरणवरू एउँ भरणेई ॥" __ - इति वचनाद् बन्धमोक्षौ न स्तः। स च पूर्वोक्तविवक्षितैकदेशशुद्धनिश्चय प्रागमभाषया कि भण्यते । स्वशुद्धात्मसम्यकश्रद्धानज्ञानानुचरणरूपेण भविष्यतीति भव्यः, एवं भूतस्य भव्यत्वसंज्ञस्य पारिणामिकमावस्य संबन्धिनी व्यक्तिर्भण्यते। अध्यात्ममाषया पूनर्द्रव्यशक्तिरूपशुद्धपारिणामिकमावविषये भावना मण्यते, पर्यायनामान्तरेण निर्विकल्पसमाधिर्वा, शुद्धोपयोगादिकं चेति ।' _अब कर्तृत्व के विषय में नयविभाग का कथन करते हैं। मिथ्यादृष्टि जीव को पुद्गलद्रव्य के पर्यायरूप प्रास्रव, बंध, पुण्य और पापपदार्थों का कर्तृत्व अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय से और जीवभावपर्यायरूप प्रास्रव, बंध, पुण्य व पापपदार्थों का कर्तृत्व अशुद्धनिश्चयनय से है । सम्यग्दृष्टि जीव को भी द्रव्यरूप संवर, निर्जरा और मोक्षपदार्थ का कर्तृत्व अनुपचरितअसद्भूतव्यवहारनय से है । और जीवभावपर्यायरूप संवर, निर्जरा व मोक्षपदार्थों का कर्तृत्व विवक्षित एकदेशशुद्धनिश्चयनय से है । परमशुद्धनिश्चयनय से तो :' बृहद्रव्यसंग्रह, पृष्ठ ६६
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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