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________________ २४ ] [ जिनवरस्य नयचक्रम् प्रमाण प्रौर नय को उदाहरण सहित स्पष्ट करते हुए पंचाध्यायीकार लिखते हैं : "तत्त्वमनिर्वचनीयं शुद्धद्रव्याथिकस्य मतम् । गुरणपर्ययवद्र्व्यं पर्यायाथिकनयस्य पक्षोऽयम् ॥ यदिदमनिर्वचनीयं गुणपर्ययवत्तदेव नास्त्यन्यत् । गुणपर्ययवद्यदिदं तदेव तत्त्वं तथा प्रमाणमिति ।' 'तत्त्व अनिर्वचनीय है' - यह शुद्धद्रव्याथिकनय का पक्ष है। 'द्रव्य गुणपर्यायवान है' - यह पर्यायाथिकनय का पक्ष है। और 'जो यह अनिर्वचनीय है वही गुणपर्यायवान है, कोई अन्य नहीं; और जो यह गुणपर्यायवान है वही तत्त्व है' - ऐसा प्रमाण का पक्ष है।" यद्यपि इसप्रकार हम देखते हैं कि नय प्रमाण से भिन्न है, तथापि उसकी प्रामाणिकता में कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है। वस्तुस्वरूप के प्रतिपादन में वह प्रमाण के समान ही प्रमाण (प्रामाणिक) है । जनदर्शन की इस अनुपम कथनशैली को अप्रमाण समझकर उपेक्षा करना उचित नहीं है, अपितु इसे भलीभांति समझकर इस शैली में प्रतिपादित जिनागम और जिन-अध्यात्म का रहस्य समझने का सफल यत्न किया जाना चाहिए। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इसके जाने बिना जनदर्शन का मर्म समझ पाना तो बहुत दूर, उसमें प्रवेश भी संभव नहीं है। पंचाध्यायी पूर्वार्ट, गाथा ७४७-७४८
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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