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________________ १७१ भगवान पार्श्वनाथ हुवा पार्श्वनाथ-पर्वत आज भी मोहभ्रांत मनुष्योंकी आंखमें अपूर्व अंजन लगाता है। __यहां पार्श्वनाथके जीवनचरित्रकी बहुत हल्की रेखाएं चित्रित की गई है। जिन्होंने युद्धभेरी अथवा शंखनाद सुननेकी आशा की होगी उन्हें शायद इसे पढने पर निराश होना पड़ा होगा। जिन्होंने इसे इस लिये पढा होगा कि, इसमें रक्तपातकी भयंकर घटनाओं और प्रेममद के रंगविरंगे चित्र देखनेको मिलेंगे, उन्हें भी शायद यह रुचिकर न हुवा हो, परन्तु भारतवर्षके जिन अनेक आर्य महापुरुषोंने कठिन साधना की है और जिन्होंने इस साधनाके प्रतापसे, कभी न बुझनेवाली प्रकाशकी मगाले जलाई है, उन महापुरुषोंमेंसे श्रीपार्श्वनाथ भगवान् भी एक वन्दनीय पुरुष है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। कोई प्रश्न कर सकता है-"पर क्या ये पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुष है ?" ___ पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुष है, इसी लिए तो जैन मतको बौद्धधर्मकी शाखा कहनेवालोंको चुप होना पड़ा है। चौवीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर कुछ जैनधर्मके प्रवर्तक नहीं है। इनके पहिले भी जैनधर्म वर्तमान था, यह वात श्रीपार्श्वनाथके ऐतिहासिक वृत्तान्तने सिद्ध कर दी है। महावीर भगवानसे पहिले भी पार्श्वनाथने जैनधर्मका प्रचार किया था। पार्श्वनाथ भगवान महावीरस्वामी जितने ही ऐतिहासिक पुरुष हैं। ____ पार्श्वनाथ प्रभुके चरित्रमें कितनी ही अलौकिक घटनाओंका होना संभव है। परन्तु इतने ही से इनकी ऐतिहासिकता का इन्कार नहीं
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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