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________________ भगवान पार्श्वनाथ __ अकालमें अपघात - मृत्युका शिकार होनेवाले-मन्त्री मरुभूतिका जीव इस अरण्यमें हाथीके रूपमें अवतरित हुवा था। कमठकी पत्नी वरुणा इसकी हथिनी थी। हाथीका नाम वज्रघोष था। वज्रघोष सल्लकी वनमें घूमता था। हथिनी रूपमें वरुणा इसकी प्रियतमा बनी थी। विधिक विधान कितने विलक्षण होते है! वज्रघोषको अपना पूर्व भव याद आ गया। असाधारण दुःख और पश्चात्तापसे उसका चित्त हिल उठा। उसने मौन भावसे अरविन्द मुनिके पादपद्ममें मस्तक झुका दिया, प्रतिज्ञा की कि, “अब हिंसा न करूंगा, यावज्जीवन १२ व्रतोंका पालन करूंगा। मुनिवर अरविन्द विहार करके गये तव वज्रघोष हाथी भी बहुत दूर तक उन्हें पहुंचाने गया । अब तो वह अहिंसावतका पालन करता है, केवल क्षुधानिवृत्तिके लिये थोडे सुखे तृण खा लेता है। अपकारीको भी क्षमा करता है; शत्रु और मित्रको भी समान समझता है; पर्व दिवसोंमें उपवास करता है। ब्रह्मचर्यसे रहता है। तपसे धीमे धीमे उसका शरीर सूखकर कांटा हो गया है, पर इसकी उसे बिल्कुल चिंता नहीं है। वह अहर्निश परमेष्ठीमन्त्रका जाप करता है। एक दिन पिपासा-व्याकुल वज्रघोष पानी पीनेके लिये वेगवती नदीकी ओर जाता था। वहां किनारे पर ही कर्कट नामी एक सर्प रहता था। उसने वज्रघोषको काट लिया। यह सर्प कमठका जीव था। पाप, कर्मके कारण उसे सर्पका भव प्राप्त हुवा था। वन्नघोषको देखते ही सांपको अपना पूर्व वैर याद आ गया। उसने इस प्रकार उस वैरका बदला लिया। ११
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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