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________________ २६ जिनहर्प-प्रन्थावली विमलनाथ-गीतम् राग - पुरवी गउउउ मेरु मन मोहा, प्रभु की मूरतीयां । सुंदर गुण मंदिर छवि देवत. उलसत हड़ मेरी छतीयां ॥१ मे. ॥ नयन चकोर वदन शशि मोहे. जातन जाणु दिनरतीयां । प्राण सनेही प्राण पीया की, लागत हइ मीठी वतीयां ॥ २ मे. ॥ अंतरजामी सब जागत हइ, क्या लिखि कइ भेजु पतीयां । / कहइ जिनहरप विमले जिनवर की, भगति करू हुं बहुमतीयां ॥ ३मे. || W अनन्तनाथ - गीतम् राग - परजीयउ वाल्हा थांरा मुखडा ऊपरि चारी । अरज सुणेज्यो एक माहरी, Pr कोई तुम न कहुँ छु विचारी ॥१ वा ॥ आठ पहूर ऊमऊ थकउरे, सेवा तमारी । अंतरजामी साहिबा, कांई लेज्यो “खबरी हमारी ॥ २वा. || करू M 4 " सुंदर सूरति ताहरी रे, लागइ पेम पीयारी 1 सात धात भेदी करी, कांई पड़ठी हीया मकारी ॥ ३वां ॥ 14 f
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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