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________________ चौवीशी पोतानउ जाणी करी हो, घउ मुझ पूठइ हाथ । कहइ जिनहरष मिल्यउ हिवइ, साचउ सिवपुर साथ ॥३॥ श्रेयांसनाथ-गीतम् राग काफी श्रेयांस जिणेसर मेरउ अंतरजामी । अउर सुरासुर देखे न रीझु, प्रभु सेवा जउ पामी ॥१ ॥ रांकन की कुण आण धरइ सिरि, तजि त्रिभुवन सामी । दुपभाजइ छिनमांहि निवाजइ, शिवपुर धइ शिवगामी।२।। क्या कहीयइ तुमसु करुणा निधि, पमीयो मेरी पामी । कहइ जिनहरष पदमपद चाहुं । अरज करू' सिरनामी ॥३॥ वासुपूज्य-गीतम् राग-मल्हार हो जिनजी अब मेरइ पनि आई । अउर सकल सुर की सेवा तजि,इक तुझसुलयलाई॥१हो।। वासुपूजि - जिनवर विणु चितमइ, धारू तमा न काई । परम प्रमोद भए अब मेरइ, जउ तुझ सेवा पाई ॥रहो।।। त्रिभुवननाथ धर्यउ सिर ऊपरि, जाकी बहुत बड़ाई । हुँ जिन हरप अवर नहीं मागु, घउ भव पास छुराई।।३हो।।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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