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________________ [ ५ ] विद्वान् श्री मनोहर शर्मा एम० ए०, विसाफ और पं० श्रीलालजी मित्र एम० ए०, डूंडलोद थे। इस प्रकार सस्था अपने १६ वर्षों के जीवनकाल में, सस्कृत, हिन्दी और राजस्थानी साहित्य की निरतर सेवा करती रही है । आर्थिक संकट से ग्रस्त इस संस्था के लिये यह सम्भव नहीं हो सका कि यह अपने कार्यक्रम को नियमित रूप से पूरा कर सकती, फिर भी यदा कदा लडखडा कर गिरते पडते इसके कार्यकर्ताओ ने 'राजस्थान-भारती' का सम्पादन एवं प्रकाशन जारी रखा और यह प्रयास किया कि नाना प्रकार की बाधाओ के बावजूद भी साहित्य सेवा का कार्य निरंतर चलता रहे । यह ठीक है कि संस्था के पास अपना निजी भवन नही है, न अच्छा संदर्भ पुस्तकालय है, और न कार्यालय को सुचारु रूप से सम्पादित करने के समुचित साधन ही हैं, परन्तु साधनो के अभाव में भी सस्था के कार्यकर्ताओं ने साहित्य की जो मौन और एकान्त साधना की है वह प्रकाश में आने पर संस्था के गौरव को निश्चित ही बढा सकने वाली होगी। राजस्थानी-साहित्य-भंडार अत्यन्त विशाल है। अब तक इसका अत्यल्प अंश ही प्रकाश मे आया है। प्राचीन भारतीय वाह मय के अलभ्य एव अनघं रत्नों को प्रकाशित करके विद्वज्जनो और साहित्यिको के समक्ष प्रस्तुत करना एवं उन्हें सुगमता से प्राप्त करना सस्था का, लक्ष्य रहा है । हम अपनी इस लक्ष्य पूर्ति की ओर धीरे-धीरे किन्तु दृढता के साथ अग्रसर हो रहे हैं। यद्यपि अब तक पत्रिका तथा कतिपय पुस्तको के अतिरिक्त अन्वेषण द्वारा प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण सामग्री का प्रकाशन करा देना भी अभीष्ट था, परन्तु अर्थाभाव के कारण ऐसा किया जाना सम्भव नहीं हो सका । हर्ष की बात है कि भारत सरकार के वैज्ञानिक सशोध एवं सास्कृतिक कार्यक्रम मन्त्रालय (Ministry of scientific Research and Cultural Affairs) ने अपनी आधुनिक भारतीय भाषामो के विकास की योजना के अतर्गत हमारे कार्यक्रम को स्वीकृत कर प्रकाशन के लिये १५०००) १० इस मद मे राजस्थान सरकार को दिये तथा राजस्थान सरकार द्वारा उतनी ही राशि अपनी ओर से मिलाकर बुल .. ३००००) तीस हजार की सहायता, राजस्थानी साहित्य के सम्पादन-प्रकशना
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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