________________
चौवीशी
हुँ तौ श्रति लालची खरौ । सा. | तुम माज हूं तो भाजूं नहीं,
भाव मुझ सुरौ ॥ सा. २ ॥ साहब गरीब निवाज कहावौ,
हुँ नही भरौ डावरौ । सा. ।
वीर जिणंद सहाई जाके,
कहैं जिनहरख सों काहि' डरौ || सा. ३ ||
= कलश =
राग
धन्याश्री
जिनवर चउवीसे सुखदाई | भाव भगति धरि निज मन स्थिर करी, कीरति छन शुद्ध गाई ॥ जि. १ ॥ जाकै नाम कल्प वृक्ष सम वरि,
प्रणमति नव निधि पाई । चौवीसे पद चतुर गाइयो,
राग बंध चतुराई ॥ जि.२ ॥ श्रीसोम गणि सुपसाउ पाह कै,
निरमल मति उर आई ।
शान्तिहर्ष जिनहर्षं नाम ते,
stea प्रभु वरदाई ॥ जि. ३ || ॥ इति श्री चतुविशति जिनानां पदानि समाप्तानि ॥ १ कहरे ।