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________________ सामायिक बत्तीस दोष स्वाध्याय ४८१ः आहट दोहट सूनइ चित्त, आरति ध्यान धरे नित नित्त । घर धंधा माहे घाठीयउ, इग्यारम विषेए काठीयउ ॥१२॥ बाजीगर मांड्यउ छइ ख्याल, चहुटइ खेलइ जेठी माल ।। ते जोतां धर्म वेला वटे, द्वादशमउ कौतुहल हटइ ॥१३॥ रामति रुड़ी पासा सारि, आवउ रमीयइ दाव वि च्यारि । एहथी धर्म भलउ छ किसु, रमण काठियउ तेरम इस ॥१४॥ ए तेरह काठीया सुजाण, धरम वेलायइ अंग न आणि । । सावधान थई कीजै धर्म, तउ जिनहरख कटे सहु कर्म ॥१५॥ इति तेरह काठियानी स्वाध्याय : सामायिक बत्तीस दोष स्वाध्याय ॥ ढाल चउपईनी ॥ सामायकना दोप वत्रीस, जाणी टालउ विसवा वीस। मन वचन ना दस दस जाण, काया ना तिम बार प्रमाण ॥१॥ करइ विवेक रहित मन धरउ, जस करिति काजे तीसरउ । करे अहंकार करी लावतउ, करइ नीयाणउ वली बीहतउ ॥२॥ रोस करे मन धरे संदेह, भक्ति रहित दस दूसण एह । हिवइ वचन ना दस सांभलउ, कुवचन बोलइ मुख मोकलउ ।। परने आपे कूड़उ आल, गेलि मांहि बोलइ ततकाल । अविर्चायुं भाखड् बहु परइ, अक्षर पूरा नवि ऊचरे ॥४॥ कलह करे वली विका घणी, हास्य करे तेडइ परभणी। वस्तु अणावे ए दस दोष, एह थी थाये पातक पोष ॥॥ ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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