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________________ पंच इन्द्रिया री सज्झॉय ४६७ । जूथाधिप वन गहन, सुखै रहै हिरणलौ। , धीवर आइ बजाइ, वीण गावै भलौ॥ सरस सुणवा नाद, तिहां उभौ रहै। : मारै कान विसेण, मरण दुख ते सहै ॥५॥ पांचे इन्द्री चपल, आपणा वसि करौ। दुरगति दुख दातार, जांणि उपसम धरौ । आराही जिन धरम, आणि मन आसता। , - कहै जिनहरख सुजाण, लहौ सुख सासता ॥६॥ इति श्री पंच इन्द्रिया री सज्माय * । परनारी त्याग गीत . . ढाल-वणरा ढोला __ सीख सुणो प्रीउ माहरीरे, तुझनई कहुं कर जोड़ाधणरा ढोला।। प्रीति न करि परनारिसरे, आवै पग-पग खोड़ ॥धणरा ढोला।। कहियो मानो रे सुजाण, कहियो मानो। वरज्या लागौ मारा लाल वरज्या लागो। पर नार रौ नेहड़लौ निवार ॥ध० आंकणी ॥ जीव तपइ जिम वीजली रे, मनड़ो न रहइ ठांम ॥ध। काया दाह मिटइ नहीं रे, गांठे न रहै दोम ॥ध २ का। नयणे नावै नींदड़ी रे, आठे पहर उदेक ॥ध॥ गलीयारै भमतो रहै रे, लागू लोक अनेक ॥ध ३ का - संवत १७३५ वर्षे आषाढ बदि १ दिने पं० सभाचंद लि० पत्र १ संग्रह में - -
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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