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________________ ४५८ जिनहर्ष ग्रंथावली अंतगड केवली थई करी, मुगतइं पहुता मुनिराय । वारी । चरण कमल निति निति बंदीये, जिनहरख कहइ चितलाइ ।वारी८ अरहन्नक मुनि स्वाध्याय ढाल॥ मुगुण ॥ वहिरण वेला हो रिपिजी पांगर्या, सोभागी सुकमाल । मागी न सके हो भिक्षा लाजतउ, ऊभउ रह्यउ छांह निहालि ॥१ कोइ वतावे हो अरहन्नर माहरउ, आतम तणउरे आधार । नेह गहेली हो मायडी विलविलइ, नयणे वरसइ जलधार गरको।। गउखड़ वइठी हो नारि निहालीयउ, सुंदर रूप सुजाण । ए रिखि उभा होवार घणी थई, आवी कहइ मीठी वाणि ॥३को।। किम तुमे आवा हो उभाथाइ रह्या, सी मन ध्याउछ वात । संयम दोहिलो हो रिपिजी पालता, सुख भोगउ दिन राति ॥४को। अङ्ग सुरङ्गो हो सोहइ सुन्दरी, तन सोलह सिणगार । जोवनवती हो अरहन्नी मोहीयउ, लागा नयन प्रहार॥५को।। नारी वयणे हो चरित्र मकीयउ, मांडि रही घरवास । भोग करमने हो वसि तिहां भोगवे, विविध विनोद विलास ॥६॥' गली गली में हो फिरती इम कहइ, आवउ म्हारा जीवन प्रोण। माइडी विसूरइ हो वाल्हा तुझ विना, दुख सालइ जिम वाण ||७ पुत्र वियोगे हो गहिली हुइ गई, केडइ लोक अपार । प्रेम विलूधी हो इम थई सोधवी, हीडइ घरि घरि वार ॥८को।।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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