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________________ चौवोली कथा कवित्त ४३७ ॥हा॥ मोनइ काइ नावै कथा, कहै वैताल नरेस । - राजि कहौ रूड़ी परइ, हूं हंकारौ देस-४ अथ प्रथम पहुर झारौ बोलायौ ॥ दहा ।। माइ-बाप, मांमै मिलै, भाई चौथौ भालि । जण च्यारे दी जूजई, कन्या एक निहालि-५ । कवित्त ।। वोंद च्यारि बोंदणी एक, च्यारे चहि आया। दोष वधंतो देखि, वप्प पावक जलाया । एक वल्यौ तिण साथि, एक तीरथ पयांणइ । एक चल्यउ ले फूल, एक फिर भिख्या आणइ । इम ठोड़ि-ठोड़ि व्यारे हुआ, चल्यौ आइ गंगा तिको । इक नगर मांहि गृह देखिनइ, भोजन काजि बैठो तिकौ-६ कामणि करइ रसोइ, वाल तदि आड़ो मंडइ । चुल्हा मइ चांपीयउ, हाथ पग सीस विहंडे । रीस करे ऊठीयौ, तांम तिण अमृत आणे । विंद छांटीयउ बाल, हूऔ जीवत अहिनांणे । तिण पास ग्रहे वलीयउ तिको, मारग मइ मिलीयउ वीयउ । रस छांटि । संजोड़े कन्यका, ऊठी आलस न कीयउ-७ नारि नीहाली नरे, राड़ि मांहो मई मंडी।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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