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________________ अथ चौबोली कथा लिख्यते ॥ कवित्त॥ सभा पूरि विक्रम्म, राइ बैठो सुविसेसी । तिण अवसर आयीयउ, एक मागध परदेसी । ऊभो दे आयीस, राइ पूछइ किहां जासौ ? अठा लगै आत्रीयौ, कोइ तें सुण्यौ तमासौ ? कर जोड़ि एम जंपइ चयण, हुकम रावलौ जो लहुं । जिनहर्प सुणण जोगी कथा, कोतिग वाली हूं कई-१ श्री चल्लमपुर सबल, तासु पति श्रीपति सौहै । कुमरी जोवनवंत, रूप रति सुर नर मोहइ । चवि चौबोली नाम, तेण हठ एम संवाह्यां। वोलावेसी वहसि, वार मो च्यार उमाह्यौ । जिनहर्प पुरुष परणिसि तिको, ताँ लगि नर निरख नहीं। बहु भूप आइ बंदी हुआ, वोल न बोलै मैं कही -२ पर दुख मंजण भूप, साथि वेताल करेनइ ।। हर्ष धरिनइ हालीयौ, गयौ तिण पुरसो लेने। अरहट कु भरी आंण, चहै विण बलदां पेखे । ' मालण परि ऊतरे, सांझि जदि थई विसेषे । नृप तांम गयो कुमरी महल, मुख बोल नहीं मूल था । जिनहर्ष कहै सुणि आगीया, निसि बोलै ज्यु कहि कथा-३
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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