SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२१ फुटकर दोहे 1 वनिता इक धन वसै सरल पत्रली सचाली | तीन चरण तसु नाम नगर पैसती निहाली || चतुर नरां कर चढी चपल चालै चंचाली पांणी पी परिहरे पाव पिण न चलै पाली || कानसं आय वातां करें निनग चीर पहिरे नहीं । जिनहर्ष कवित इणपरि जपै सुगुण अर्थ कहिज्यो सही ॥५॥ उतपति तो आकास वसै उरध दिसि वासो । निरमल गंगा नीर तासु मुख कृष्ण तमासो || कामणि संग करूर, सदा निति र समुरो | असैन पॉणी अन्न पुहवि जस ग्राहक पुरो | अरि काल रूप भंज इला विहाग जेम तातो वहै । जिनहर्ष लहै सावासि सो जिको अरथ साचौ कहै || ६ || सीह लंक नहीं संक चीर बकौ वेढालौ । फिरै जोर बल फौरं दुतौ रंढालौ ॥ गैवर सीस गिरीस वीस वीसवा चंचालौ । फिरै डाड मुँह फाड जाड करडी तनु कालौ || धरणी घणी नांखे धडछि पट चरणे मरणे खिसे । जिनहर्ष सुभट कुण जालमी उलखिज्यो आरख इसे ||७|| नान्हडीयो नर एक चोर मैं निरख्यौ नयणे । t कासूं वयणे ॥ घक नै धकली कहाँ गुण नवखंड मोटो नाम जासु सह कोई जाणै ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy