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________________ ४०० जिनहर्ष ग्रंथावली फाग्टिदा भरंति फाल केवीयांह हलाल काल, खलकै रूहिर खाल गोडीया गयंद । ' दोषीया निजर दीठ रोस माथै पाडै रीठ, छाग्डिदा उतारे छाक माल्हती मयंद ॥८॥ खाग्डिग्डिदा थाट थाट झाडिग्डिदा दीये झाट विहंती आराण बीच वाढंती विहंड। महादेव मछराल माग्डिग्डिदा रुंडमाल । सोहे हीय. सिणगार पाडीया प्रचंड ॥३॥ देत दलां लागी लीक भगवती निरभीक, त्राहि त्राहि तुंही तुंही राखि राखि राखि। . महामाई महामाई पांण छोड़ कर आया पाय, पाग्डिग्डिदा पालिपालि भाग्डिन्डिदा भाखि ॥१०॥ कलश नागिड गिडदा भाखि असुर ज्युं तूल उडायें । निह स पडै नीसाण छोह अरियणां छुडाये जागिड गिड़दा जैत सुजस दह दिसे सवाइ राग्डि गिड़दा रूप मेर समवड़ महामाइ , खेरीयो खाग सत्रां सिरे हार मनावी हकले जिनहरख नमो बलि योगिणी वखतांवर आखाँ बले ॥११ .. इति श्री देवीजी री स्तुति
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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