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जिनहर्ष ग्रन्थावली चरम नाह महावीर तणा नव* सुभ गणधार । संयमधर सिर सेहरा ए मुनी चउदहजार ॥ १२ ॥ आवशक दाखव्या ए जिन मुनि गणधार । प्रह ऊठि निति गाईयइ ए करी भगति अपार ॥ लहीयइ सुर नर मुगति तणा अनुपम सुखसार । कहइ जिनहरख सदा हुवइ ए धरि धरि जय जय कार ॥ १३ ॥ चउबीस जिन बीस विहरमान च्यारि सास्वत
जिन नाम स्तवनं
___ ढाल || चउपईनी॥ रिखभनाथ सीमंधर स्वामि, पाप पणासइ जेहनइ नामि । अजितनाथ युगमंधर देव, सुरपति नरपति सारइ सेव ॥ १ ॥ जीजउ संभव बाहु जिनंद, प्रणम्यां लहीयइ परमाणंद ।
श्री सुबाहु अभिणंदन नमुं, भव भव केरा फेरा गमुं ॥ २ ॥ पंचम जिनवर सुमति सुजात, हीयडामांहि वसइ दिन राति । छठउ पदमप्रभु जिनराय, श्री स्वयंप्रभ प्रणमुं पाय ॥ ३ ॥ श्रीसुपास पूरइ मन आश, रिखमानन तारइ निज दास । चंद्रप्रभ जिनवर आठमउ, अनंतवीर्य भवीयण निति नमउ ॥४॥ सूरप्रभ श्रीसुविधि जिणेस, जपतां भागइ सयल कलेश । दसमउ सीतलनाथ विशाल, चरण न मुंक हुँ चिरकाल ॥ ५ ॥ इग्यारम वज्रधर श्रेयंस, जग सगलउ जसु करइ प्रसंस। चंद्रानन बारम वासुपूजि, चउसठि इंद्र करइ निति पूज ॥६॥
ग्यारह
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