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________________ ना श्री अमाहरा पार्श्वनाथ स्तवन परता पूरइ सेवकां, प्रभु सेवक प्रतिपाल लाल रे। ॥१०श्री। दरसन थी दउलति हुवइ, नांमइ नासइ पाप लाल रे । भयभंजण प्रभु भेटतां, मिटि जायइ भवताप लाल रे ॥११श्री।। ध्यान हृदये राखीयइ, लहीयइ नवे निघांन लाल रे । कहइ जिनहरप जुहारतां, दीपइ अधिकइ वान लाल रे ॥१२श्री।। श्री अमाहरा पाश्वनाथ स्तवन ढाला || दीव ना गरवा नी ॥ पो दसमी दिन जाया जगगुरु जोइ जो। अश्वसेन नंदन सुरतरु सारखउ रे जो ॥ जेहनी आदि न जाणइ कलियुग कोई जो। जुनी मूरति एहीज परतखि पारिखउ रे जो ॥१॥ तूं साहिब नई हुंछु ताहरउ दास जो। प्रीतड़ी पालेज्यो वाल्हा पासजीरे जो ॥ मइ राखी छइ ताहरी मन मई आस जो। आसड़ली पूरवता कांइ नथी अजी रे जो ॥२॥ ऊमाहउ मिलिवा नउ एहवं थाइ जो । जाणु नइ हूं दरसण देखं ताहरउ रे जो ॥ मुझ मन मधुकर, मोह यउ पंकज पाय जो। आज दिवस धन भेट्यउ पास अझाहरउ रे जो ॥३॥ तु माहरा मन नउ मानीतउ मीत जो। आतम नउ आधार सनेही तुं अछइ रे जो ॥ " ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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