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________________ पार्श्वनाथ स्तवन उत्तम कंचन सारिखा रे, कस पहुंच कसीया । सोह वधारह पारकी, कांड़ पर घर पिणि वसीया ॥ ३ वी० ॥ सुन्दर सुरति ताहरी रे, दीठां अधिक सुहावइ । बीजी सुरति जोवतां, म्हांरी आंखडीयां तलि नावइ || ४वी० ॥ जउ तारउ तउ तारिज्यो रे, नही तर सुनजरि जोज्यो । कहइ जिनहरख मया करी, कांइ अमसुं सुप्रसन्न होज्यो || ५ || वी० श्री पार्श्वनाथ स्तवन २५७ ढाल || ईडर आवा प्राविली रे || एहनी मोहन मुरति जोवतां रे, सीतल थायइ नईण | हीयड़उ मिलिया ऊलसह रे, ध्यान धरू दिन रइंण ॥ १ ॥ जिणंदराय पूरउ वंछित आस, मोरी सफल करउ अरदास । तउ भव भव ताहरउ दास, तुझ पास न मेल्हउं पास | आंकणी । कोइ केहनइ मन गम रे, केहनइ कोई सुहाइ | माहर मन तुंही वसई रे, दीठां आवइ दाइ || २ जि० ॥ तुझ सरीखा भारी खमा रे, तुझ सरीखा गुणवंत । ते सेव्या फल नवि दीयइ रे, तर वीजा नउ स्यउ तंत || ३ जि० ॥ सेवा तेहनी कीजियइ रे, जे सेवा पोसाइ । निगुणांनी सेवा कीयां रे, मान माहातम जाइ ॥ ४ जि० ॥ उत्तम आस्या पूरवहरे, मेल्हह नही निरास | जस जिनहरख ग्राहक हुवइ रे, जिम तिम ल्यइ सावास ॥ ५ जि० ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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