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________________ ! १५ ] निर्मल धारा प्रवाहित की है। सांसारिक मोह में फंसे हुए जीव को चेतावनी देकर उन्होंने अनेकश. मार्ग दर्शन किया है। इस रूप में सतवाणी के उदाहरण द्रष्टव्य हैं (१) इ धन चदन काठ करे, सुरवृक्ष उपारि धतूरज बोवे । सोवन थाल भरे' रज रेत, ___ सुधारस सू करि पाउहि धोवे । · हस्ति महामद मस्त मनोहर, भार वहाई के ताहि विगोवे । मूढ प्रमाद ग्रह्यो जसराज, न धर्म करे नर सो भव खोवे ॥८॥ (मातृका वावनी, पृ० ८३) (२) नमिय देव जगद्गुरु, नमिये सद्गुरु पाय । दया जुगत नमिये धरम, शिवगत लहै उपाय ॥२॥ मन ते ममना दूर कर, समता घर चित मांहि । रमता राम पिछाण के, शिवपुर लहै क्यू नाहि ||३|| शिव मन्दिर की चाह घर, अथिर मदिर तज दूर । लपट रह्यो कहा कीच में, अशुचि जिहां भरपूर ॥४॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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