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________________ नेमि राजिमती स्तवनानि १६४ पालइ पूरी प्रीति कि जमवारा लगइ म्हारा लाल कि० । तुझ सरिखा ठग होइ कि इणि परि ठगइ म्हारा लाल । प्रीतम विरह वियोग अगनीनी परिदहइ ॥ म्हा० ॥ वेदन हीयड़ा माहि कि करवत जिम वहइ म्हारा ॥३॥ पिउ पिउ करू पुकार वापीहानी परइ। म्हां ॥ बेगुनही यादुनाथ कि कां मुझ परिहरइ ॥ म्हा० ॥ जो सांचा निज सईण वइण सफलउ करइ । म्हारा । न करे आस्या भंग पातक थी थरहरइ ।। म्हारा पा० ॥ चाल्हा साजन तेह राखइ आपण कन्हइ । म्हारा रा० । राजुल कहे जिनहरप मिली जाइ नेमि नइ ।। म्हा० मि० श॥ नेमि राजिमती गीतं ढाल || ऊमादे भट याणी ना गोतनी ॥ (वीनवइ राजुल वाल, बीनतड़ी अवधारउ हो गोरी रावाल्हा नेमजी हेकरिसउ रथवाली,अवगुण पाखइमुझ नइ होगोरीरा वाल्हाकांतजी माछिलड़ी विणि नीर, टलवलती किम जीवइ हो गोरी जोइ नइ मो मन रहइ दिलगीर, सरवरीयांमइ भरीयो होगोरी रोइ नइ ।। काम तणा पंच वाण, मो तनु लागइ हो गोरी रा किम सहुँ । आकुल थायइ प्राण, अन्तरना, दुख केहनइ हो गोरी हुँ कहु आठ भवांरउ प्रेम, इम किम दोषी वयणे हो गोरी तोड़ीयइ । कतुआरी ना जेम, ताँतण टानी परि हो गोरी जोड़ीयइ ॥ पंखी पिणि निजनारी, नयणां आगलि राखइ हो गोरी अह निसइ
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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