________________
१७८
जिनह पं ग्रन्थावली
माध्यम तरु जउ रोपीजह रे, सुभ फल सी आशा कीजइ ।।५।। मृगराज गुफा सेबीज रे. मोती गयन लहीजड़ । कूकर घरमांहि रमीजइ रे, तउ हाड चरम निरखीजइ ॥६॥ . जिन नमतां जिन पद पापड़ रे, खिणि मांहि करम जड़ कापइ । अन्य देव तणइ बहु जापइ रे, निज पिंड भरायइ पापड़ ॥७॥ सहु जीव तणउ हितकारी रे, पारेवउ जीव उगारी रे । जगमां कोरति विस्तारी रे, दाता साहे अधिकारी ॥८ माय गरमइ मारि निवारी रे, कीधी जिणि शांति विचारी। शांति नाम कबउ नर नारी रे, ते देव तणइ बलिहारी ॥६॥ महीपति विश्वसेन मल्हारो रे, अचिरा उपरइ अवतारो। महीयल महिमा भंडारो रे, त्रिभुवन ठाकुर सिरदारो ॥१०॥ जिन दरसण थो दुख जायइ रे,जिन दरसण दउलति थायइ ।। जिनहरख सदा गुण गावइ रे, जिन सुपसायइ सुख पावइ ॥११॥
श्री नेमिनाथ-स्तवन
॥ ढाल-तायका नी ।। समकति दायक सोलमारे, सामलि अरज सुजाण रे।सांतिसर।। ताहरउ नाम सुहामणउ रे लाल, वाल्हउ जीवन प्राण रे ॥सांपत्तु ।। तुजगमोहण वेलड़ी रे लाल, मोह्या सह राय राण रे सां। इंद्र चंद्रादिक मोहीयारेलाल,सीस धरइ तुझ आण रे ॥सांरतु॥ सोयन वरण सुहामणु रे, काया धनुष चालीस रे ।सां। लंछण मिसि सेवा करइ रे लाल,हिरण चरण निसि दीस ॥सांस्तु ।।