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________________ आदिनाथ स्तवनानि मुग्ध लोक ठगवा मणी जी, करू अनेक प्रपंच । कूड कपट बहु केलवी जी,पाप तणो करूसंच रे जिनजी मु१० मन चंचल न रहे किमे जी, राचे रमणी रे रूप । काम विटंमणशी कहुँजी, पडीश हुँ दुरगति कूपरे जिनजी।११।। किश्या कहुगुण माहराजी, किरया कहु अपवाद । जेमजेम संभारू जी हियेजी, तेम तेम वधे विखवाद रे जि.।१२। गिरूया ते नवि लेखवेजी, निगुण सेवक नी बात । नीच तणे पण मंदिरे जी, चंद्र न टाले जोतरे जिनीं ।।मु.१३॥ निगुणो तो पण ताहरो जी, नाम धरा रे दास । । कृपा करी संभारजो जी, पूरजो मुज मन आस रे जिनजी मु१४ पापी जाणी मुज भणी जी, मत सूको विसार । विष हलाहल आदर्योजी, ईश्वर न तजे तासरे जिनजी ।१५मु। उत्तम गुणकारी हुवे जी, स्वार्थ विना सुजाण । करसण चिंते सरभरे जी, मेह न मांगे दाण रे जिनजी. ११६मु । तु उपगारी गुणनिलो जी, तु सेवक प्रतिपाल । तु समरथ सुख पूरवाजी, कर माहरी संभाल रे जिनजी ।१७मु। तुजने शुं कहिये घणो जी, तु सह बाते जाण । मुजने आजो साहिवाजी,भव भव ताहरी आण रेजिनजी १८मु श्री शत्रञ्जय राजियो जी, मारु देवी नो नंद । कहे जिनहरप निवाजयो जी, देज्यी परमानंद रेजिनजी १६मु इति श्री आदिजिन बीनती बालोयणा स्तवन
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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