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________________ जिनहर्ष - प्रन्थावली श्री विमलाचल मंडण श्री आदिनाथ स्तवन राति दिवस सूतां जागतां, मुझ मन एह ऊमाहउ । जाणु श्री रिसहेसर भेटु, ल्युं मानव भव लाहउ ॥ १ ॥ भावसु श्री विमलाचल जईयइ, भव भव ना पातक परिहरीयड़ । पवित्र सुथिर मन थय ॥ भा० ॥ ए तीरथ गिरुाउ गुण आगर, ए सरिखउ नहीं कोई । ऊपर साधु अनंता सीधा, कर्म तणी जड़ खोई ॥ २ मा० ॥ समवसर्या आदीस्वर स्वामी, पूरव निवाणु वार | उत्तम थानक ए जांणी नह, लेई बहु परिवार ॥ ३ भा० ॥ 'डरीक गणधर इहां सीधा, तिणि पुंडर गिरि नाम । चैत्री पुनम यात्रा करीयड़, लहीयइ अविचल ठाम || ४ भा० ॥ कर्म शत्रु जीपेवा कारण, शत्रु ंजय मेटीजइ । डगलइ डगलड़ पातक नासह, दोड़गति दूरड़ की जड़ ॥ ५ भा०॥ जिन शासन तीरथ छड़ बहुला, तिथि मां ए सिरताज । सहु तीरथ सैल मिली नड़, पद दीघउ गिरिराज || ६ भा० ॥ विधि सु जउ गिरि यात्रा कीजइ, गिरि देखी हरखीजड़ । दान सुपात्रई तिहां जउ दीजइ, करम कठिन छेदीजड़ ॥ ७भा० ॥ व्रतधारी ने सचित प्रहारी, एक आहारी थईयड़ | १३१ भूमि संथारी समकित धारी, निज पदचारी जईयइ ॥ ८ मा० ॥ सामायक- पड़िकम करीय, तर भावसायर तरींयह । वाट सुगुरु संघात चली यह, तर भव माहि न फिरीयइ ॥ भा० ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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