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________________ जिनहष-प्रन्थावली आठम हवा आठ दिन, प्रीउ वीछड़ियां अाज । प्राण हुवै जो प्राहुंणौ, तो हिज राखै लाज ॥८॥ सखी सहेली सांसलौ, मैं मन काहल छाड़ । नव दिन कीधा नवरता, प्रीतम हंदी चाड ।।६।। सखी सहेली साहिबौ, आइ मिलै भर बाथ । जो पूजू परमेसरी, दसराहौ पिउ साथ ॥१०॥ सहियां आज इग्यारसी, म्हें तो आज व्रतीक । करिस्यां तोही पारणौ, मिलसी वर तहतीक ॥११॥ वारस आज सहेलियां, ऊगा बारह भांण । जारा साहिब प्राविया, तीन्हा तुरी पलांण ॥१२॥ ते रस तेरह वही गया, अजे न लामै थाग । माथै देहे हत्थड़ा, ऊमी जोऊ माग ॥१३॥ चउदस खेलै चांदणी, सुखिया लोग सदीव । म्हें तौ वाली श्राखडी, खेलेवा विण पीव ॥१४॥ पूनिम पूरा प्रेम ढूं, घरे पधार्या राज । मृगनयणी उच्छव करै, पिय कारण जसराज ॥१५॥ ॥ इति पनरह तिथ रा दूहा संपूर्ण । २. दिन, ३. खरा, ४. प्रीउ मिलसी, ५. दीये, ६. प्रीउ,
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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