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________________ जिनहर्प-ग्रन्थावली अथ मान दूषण कथन सवइया ३१ अधम न करि मांन मांन कीयै है है हांन, मांन मेरी सीख मांन सुख ग्राही मान रे । मांनतें रावण राज लंका सू गयो वेकाज, कियो हैं अकाज लाज गई सब जाग रे । दुर्योधन मान करि हारी सब धर अरि, मांन तै गयो हैं सुज चातुरी की खांणि रे । कहै जिनहरख न मांन ां मन मै, यह तो दसारणभद्र जैसो मांन आण रे ||७|| अथ माया दूषण कथन सवइया ३१ माया का करें मूढ छोर दे माया की रूड, माया भली नांहि जांणि तोनू है विचारी ज् 1 नासिजै है मित्राचार प्रीत मै वढै विकार, सजन की सजनाई छूटै तूटै मांरी जू । t १०३ माया हुं टूट सूट हैं खर वृखम उंट, मलिनाथ माया साथ भयो वेद नारी ज् । माया दुरगति ठौर छौरि कहा करूं और, कहै जिनहरख ज्यू है है अविकारी ज् ||८||
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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