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________________ जिनहर्ष - प्रन्थावली चापड़ मौजि पार मौजि अपार ॥ ३ज. ॥ साहिबनड़ त हो कुमणा कांन थी, पूरण पूरण चाहि । ७६ सेवक मउज न पावड़ प्रभु तणी, चूक चाकरी मांहि ॥४ज. ॥ माहरइ तउ गरज न का किणि वातरी, कहिवउ छड़ मुझ तारि । साहिब उ बाते इक बातड़ी, आवागमण निवारि ॥ ५ज. ॥ ठावा' संदेशा हो जर पहुंचाईयर, फेरि पड़ड़ कुज कोई । निज मन मांहे हो प्रभु मानइ भलो, जउ दिन सावल होड़ ॥ ६ज. ॥ करम सखाइ हो मुझ छोडड़ नहीं, पड़ियर सबल पासि । जउ जिनहर्ष महिर प्रभुनी हुई, पूगड़ सबली ग्राश ॥ ७ज. ॥ महाभद्र - जिन-स्तवन [ ढाल - मोरा प्रीतम ते किम कायर होइ ] निशि भर सूतां आज मंहजी, दीटां सुपनां मांही । १ मीठा ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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