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वीशी
निसुणी स्वयंप्रभु सामि, हुं तउ खूनी हो सेवक ताहरउ | कहइ जिनहरष सुठाम दीजइ कीजइ हो ऊपर माहरउ १७
ऋषभानन जिन स्तवन
ढाल - भरणइ देवकी किणि भोलव्यउ । - ऋपभानन सुप्रीतडी, हुं तउ करिसु२ अंतर खोल साहिबा । · कपट न कोइ राखिसु,मइ तउ पायउ २ भेद अमोल ।सा.। इतरा दिवस लगी भम्यो, बहुला दीठा दीठा देवी देव ।सा.। ___ भरम मिथ्यात वसई पड्यो,
साचा जाणी नइ रूडा जाणी नइ कीधी सेव।।२॥रि.॥ के कामी के लोभीया, केतउ 'क्रोधी क्रोधी रुद्र अतीव सा.।
दूपण भरिया देखि नइ,
म्हारउ न मिलइ न मिलइ त्या सु जीव (सा.परि.॥ रससागर समता रस तणउ, रूडि सूरति नीकी मूरति मोहनखेल
संतोषइ सहु को भणी,
मीठी वाणी आछी वाणी अमृत रेलि ॥सा.॥१४। रि.। पांति विचई विहरउ करइ, एतउ अोछा २ नउं प्राचार ।सा। एक नजरि सहु ऊपरै, तु राखइ प्राण आधार सा.।।। जेहनी प्रीति न पालटइ, तिणि सुमिलियइ वार हजार । -१ क्रोधइ भर्या