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________________ वीशी ५५ कंता एहनाहो गुण निकलंक, जिम कसोटी कंचन कस्य उ । गो । कंता माहरड़ हो जीवन प्राण, ए जिनहरप हीयड़ वस्यउ | ६ | अजितवीर्य - जिन - स्तवन [ ढाल - लटकउ पारउ रे लोहारणीरे । ए देशी ] अजितवीर जिन वीसमा रे, तुरंत मोह मोहण वेली, मटकउ थारा र े मुपडा त उरे । नव कमले सोना तो र े, चालइ गजगति वेलि ॥। १ म ॥ नय कमल अणीयालडां र े, सीतल नइ सुसनेह | म | चंद्रवदन अमृत कर रे, वाणी पावस मेह ॥ २ म ॥ निरमल तीपी नासिका रे, दीप सिवा उ हार | म | दंत पंति हीरा जख्या रे, जाणे मोतीहार । ३ म । वर प्रवाली पीयारे, बांह कमलना नाल | म । आगलीयां मगनी फलीरे, सुंदर नइ सुकमाल | ४ म । रूपड़ सुरनर मोहीया रे, मोह्या चउसठी इंद | म । समवसरण बसी करी रे, प्रतिबोध नर वृंद ॥ ५ म ॥ दीठां विणि मन ऊलसह रे, मिलिया तुम जिनराय । म । कह जिनहरप यात्री मिलउरे, कड़ ल्यउ सुज बोलाइ | ६म |
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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