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जिनहर्प-ग्रन्थावली
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चामर ढालइ देवता, सिंहासण रतन जडाव रे माइ ।
भामंडल झलकइ घणु,
जाणे कोडि गमे दिन राव रे माइः॥४॥ वाजतह मधुरी दुंदुभी, त्रिण छत्र विराजइ सीस रे माइ ।
आठ प्रातीहार सोमता ,
जगनायक जगदीस रे माइ॥५॥ निरमल काया जेहनी, पीर वरण लोही नइ मंस रे माइ,
सास ऊसास सुगंधता ,
जाणे कमल कुसम अवतंस रे माइ ॥६॥ करतां कोई दैवइ नही, प्रभु नइ श्राहार नीहार रे माइ ।
अतिसय जिन ना एहवा,
थाइ जनम थकी एव्यारि रे माइ ॥७॥ विहरमाण ए तीसरउ, श्री बाहु जिणंद सुपकार रे माइ ।
भेट्या मइ जिनहरप स्यु, मोरउ सफल थयर अवतार रे माइ ॥८॥