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________________ ५६ [जिन सिद्धान्त रूप कह सकते हैं, उस कर्म को सम्यन्मिथ्यात्व कहते हैं। प्रश्न-सम्यप्रकृति किसे कहते हैं ? उत्तर--जिस कर्म के उदय से सम्यश्रद्धा में अबुद्धिपूर्वक दोष उत्पन्न हो, ऐसे कर्म को सम्यक्प्रकृति कहते हैं। प्रश्न-चारित्र मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-जो आत्मा के चारित्र गुण को घात करे, उस कर्म को चारित्र मोहनीय कर्म कहते हैं ? प्रश्न- चारित्र मोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर-चारित्र मोहनीय कर्म के दो भेद हैं(१) कपाय, ( २ ) नोकपाय । प्रश्न-कपाय के कितने भेद हैं ? उत्तर- कपाय के १६ मेद हैं-(१) अनन्तानुबन्धी चार, (२) अप्रत्याख्यानावरण चार, (३) प्रत्याख्यानावरण चार और (४) सज्वलन चार । इन सब के क्रोध, मान, माया, लोभ का भेद करने से १६ कपाय होती हैं। प्रश्न-नोकवाय के कितने भेद हैं ? उत्तर-नो कपाय के नोभेद हैं-(१) हास्य,(२) रति, (२) अरति,(४) शोक, (५) भय, (६) जुगुप्सा, (७) स्त्रीवेद, () पुरुषवेद, (8) नपुसकवेद ।
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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