SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | जिन मिद्धान्न वरण की नौ प्रकृति, मोहनीय की अट्ठाईस, अन्तराय की पांच मिलकर घातिकर्म की मैंतालीस, असाता वेदनी १, नीच गोत्र १, नरक आयु १, नरक गति १, नरकगत्यानुपूर्वी १, तिर्यञ्चगति १, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी १, जाति में से आदि की ४, संस्थान अन्त के ५, संहनन अन्त के ५, स्पर्शादिक बीस, उपघात १, अप्रशस्तविहायो गति १, स्थावर १, सूक्ष्म १, अपयोप्ति १, अनादेय१, अयशकीर्ति १, अशुभ १, दुर्भग १, दुःस्वर १, अस्थिर १, और साधारण १, मिलकर एक सौ कमें प्रकृति का नाम जड़ पाप है। प्रश्न--बन्ध तत्व किसको कहते हैं ? उत्तर-बन्ध तन्त्र दो प्रकार के है-(१) चेतनबन्ध, (२) बड़ बन्ध । प्रश्न- चेतनबन्ध किसको कहते हैं ? उत्तर-आत्मा में अनन्त गुण हैं उसमें से तीन गुण की विकारी अवस्था का नाम चेतन बन्ध है(१) श्रद्धा गुण की विकारी अवस्था का नाम मिथ्याल, (२) चारित्र गुण की विकारी अवस्था का नाम क्रपाय, (३) और क्रिया गुण की विकारी अवस्थाका नाम लेश्या। प्रश्न-जड़ बन्ध किमको कहते हैं ?
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy