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________________ जिन सिद्धान्त (३) हरि, ( ४ ) विदेह, ( ५ ) रम्यक, (६) हैरण्यवत (७ ) ऐरावत । विदेह क्षेत्र में मेरु के उत्तर की तरफ उत्तरकुरु और दक्षिण की तरफ देवकुरु हैं । जंबुद्वीप के चारों तरफ खाई की तरह वेढे हुए दो लाख योजन चौड़ा लवण समुद्र है । लवण समुद्र को चारों तरफ से वेढे हुए चार लाख योजन चौडा धातकी खण्ड द्वीप है । इस धातकीखण्ड द्वीप में दो मेरु पर्वत हैं और क्षेत्र कुलाचलादि की सब रचना जंबूद्वीप से दनी है। धातकीखण्ड को चारों तरफ बैठे हुए आठ लाख योजन चौडा कालोदधि समुद्र है और कालोदधि को बैठे हुए सोलह लाख योजन चौडा पुष्कर द्वीप है । पुष्कर द्वीप के बीचों बीच बडे के आकार चौडाई पृथ्वी पर एक हजार वाईस योजन बीच में सात सौ तेईस योजन ऊपर चार सौ चौबीस योजन ऊंचा सत्तर सौ इक्कीस योजन और जमीन के मीतर चार सौ सत्ताईस योजन जिसकी जड़ है ऐसा मनुप्योत्तर नाम पर्वत पड़ा हुआ है जिससे पुष्कर द्वीप के दो खण्ड हो गये हैं। पुष्कर द्वीप के पहले अर्द्ध भाग में जम्बूद्वीप से दूनी दूनी अर्थात् धातकी खण्ड द्वीपके बराबर सब रचना है । जंबूद्वीप धातकी द्वीप और पुष्करा द्वीप तथा लवणोदधि समुद्र और कालोदधि समुद्र इतने क्षेत्र को नरलोक कहते हैं। पुष्कर द्वीप से आगे परस्पर एक
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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