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________________ स्वस्तिक रहस्य ' प्राकृत भाषा में 'स्वस्ति' या 'ग्वस्निक' के विभिन्न रूप मिलने है। जिन रूपों का प्रयोग मगल, मेम. कल्याण मे प्रसस्त अयो में किया गया है, उनमे कुछ इस प्रकार है (१) सन्धि (म्बम्ति) 'सन्धि कोई कविनों। ---पउमरिड, ३५१६२, (२) सत्यि (म्बनिक्षेमकल्याण मगल, पुष्प आदि), हे० २१४५, म० २१ । (३) सत्थिा (म्वनिक) प्रश्न व्याकरण, पृ० ६८. मुपामनाह पनि ५२, श्रा० प्र० मू० २७ । (४) मत्थिक, ग (म्बनिक) पर मह महग्गव कोष, पनामक प्रकरण १२३ । (५) मोत्यय (म्वस्तिक) पाइयम: महण्णव कोष, पचामर प्रकरण । (६) मोत्थिा (म्बम्निक) उववा: मूत्र, मातृ धर्मकथा. पृष्ठ ५। उक्त सभी शन्द-पी में मगलभावःनित है। अन यह निश्चय ही हो जाना है कि 'स्वम्नि' और 'स्वम्निक का प्रग भी '' की भानि मगन निमित्त होना चाहिए। अब प्रश्न यह होता है कि जम गो परमेष्ठी का प्रनिनिधित्व प्रान है, वम म्बग्निक को किमका प्रनि धिन्व प्राप्त है? हम प्रान का समाधान यह है कि जब यह निश्चय ही बुका कि 'वनिक' निर्माण में मगल कामना निहिन है, तो यह भी आवश्यक है कि हममे भी ' की भाति कोई मगन निहिन होना चाहिए। इमको बोत्र के लिए जब हम णमोकार मन्त्र में मागे चलन है, तब हमे उभी पाठ में परमगगन चनु शरण पाठ मिलता है और हम पाठ को स्पष्ट रूप मे मगल घोषित किया गया है, यषा-चत्तारिमनन' इत्यादि । इम पाठ को आज मभी जन आवाज पढ़ने है। पूरा पाठ इस भाति है पत्तारि मगन' । अरहना मगन । मिया मगल, माहू मंगन, केनि पण्णतो धम्मो मगन। पनारि लोगुतमा । अरहना मांगुनमा। मिडा मोगुतमा । मार मोगुनमा केवनिपग्णता धम्मो लोगुनमा पत्तारिमरण पवग्जामि । अरहते मरण पबमामि । मिजे सरप पपयामि । साहसरणं पवग्जामि । फेवनि पणत धम्म सरण पन्जामि।
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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