SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. जिन-मासन के विचारणीय प्रसग का मटन उन्लेन है - णमोकार मन्त्र' और 'मगलानमणरणपाठ ।" गमोकार मन्त्र के सम्बन्ध में कहा गया है 'एमा पच जमायागे मनपावपणाम गो। मगलाण च मवेमि पदम हवः मगन ।' यह पर नमस्कार मर्व पापों का नाश करने वाला और गर्व मगलो में प्रथम मगन है। उक विवरण के प्रकाण में, मगल कार्यों में ''का प्रयोग किया जाना म्पटन परिक्षन होता है, जो उचित ही है। पर 'म्बग्निक' के सम्बन्ध में अभी नक निर्णय नही हो पाया है। कोई इमं चतुर्गनि भ्रमण और मुक्ति का प्रतीक मानता चला आ रहा है तो कोई ब्राह्मी लिपि के 'ऋ' वर्ण के ममाकार मानकर इसे ऋषभदेव का प्रतीक मिट करने के प्रयत्न में है। मन मा भी है कि यह 'मन्यापक' के भाव में है। नात्पर्य यह कि अभी कोई निष्कर्ष नहीं मिल रहा है । अन उमकी वाम्नविकना पर विचार करना श्रेयस्कर है। हस्ति, स्वस्तिक या साथिया 'म्वस्तिक' मस्कृत भाषा का अव्ययपद है। पाणिनीय व्याकरण के अनुमार, इमं याकरण कौमुदी में ५४वे कम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह 'म्बग्निक' पद 'मु' उपमर्ग तथा 'अग्नि' अध्यय (क्रम ७१) के योग में बना है, यथा - मु+ अम्ति बाम्न। इनमें 'इकोयचि' सूत्र में उकार के म्बान में बकार हुआ है। बहन में लोग 'अग्नि को त्रियापद मान कर उसका 'है' या 'हो अर्थ करत है, जो उचित नहीं है. क्योंकि यहा 'अम्नि' पद क्रियाम्प में नहीं है, अपितु निडन्त प्रतिपक अव्यय है। न कि 'अम्निीग'म तिङन्त प्रतिस्पक अव्यय' है। बम 'स्वम्ति' में भी 'अम्नि' को अव्यय माना गया है. और 'म्बग्नि' अव्यय पद का अर्थ कल्याण, मगल. शुभ आदि केम्प में किया गया है। प्रकृत में उग्नि 'म्बम्भिक' शब्द भी इमी 'स्वम्निका बाचक है। जब 'म्बग्नि' अपय में म्याचं में 'क' प्रत्यय हो जाता है. अब यही 'म्बम्नि' प्रकृत में 'म्यमिक' नाम पा जाता है। परन्तु अर्थ में कोई भेद नहीं होता । 'म्बम्ति एव म्बनिक' को हम प्युपनि के अनुमार, जो 'म्बस्ति' है वही 'म्वस्तिक' है और जो 'म्वस्तिक' है वही 'स्वस्ति' है। उक्त प्रमग मे ऐसा फलित हुा कि मभी 'सस्ति' स्वस्तिक है मोर सभी 'स्वस्तिक' 'स्वस्ति' है, अर्थात् 'स्वस्ति' और स्वस्तिक' में कोई भेद नही है । यत:-'स्वस्ति एव स्वस्तिक'।
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy