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________________ चतुर्थभाग। १२५ - २५४। • चल पूजा कीजे, वनारसमें आय ॥ चल० ॥ टेक ॥ पूजा कीजे सब सुख लीजे, आनंद मंगल गाय ॥ चल. ॥१॥ पारसनाथ सुपारस राज, देखत दुख मिट जाय ॥ चल० ॥२॥ गंगाने परदक्षिण दीनी, ता पुरकी हित लाय | चल० ॥३॥ द्यानत औसर आज़ हि आछो, वंदे प्रभुके पाय ॥ चल०॥४॥ २५५। - सेट सुदरसन तारनहार । सेठ० ॥ टेक ॥ तीन वार दिढ़ शील अखंडित, पालैं महिमा भई अपार ॥ सेठ० ॥१॥ सूलीत सिंघासन हूवा, सुर मिलि कीनौं जैजैकार ॥सेठ० ॥२॥ सह उपसर्ग लबो केवलपद, द्यानत पायो मुकतिदुवार ।। सेठ०॥३॥ .. २५६। पावापुर भवि वंदो जाय ।। पावापुर० ॥ टेक ॥ परम पूज्य महावीर गये शिव, गोतम ऋषि केवलगुन याय ॥ पावापुर० ॥१॥ सो दिन अव लगि जग सव मान, दीवाली सम मंगल काय || पावापुर० ॥ २॥ कातिक मावस निस तिस जागे, द्यानत अदभुत पुन्य उपाय || पावापुर० ॥३॥ २५७। .. जिनवरमूरत तेरी, शोभा कहिय न जाय ॥ जि
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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