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________________ . . . १२२ जनपदसंग्रह। . .. २४५। . . . : .... . . . . . ___ मोहि तारि लै पारस स्वामी ॥.मोहि ॥ टेक ॥ पारस परस कुधातु कनक है, भयो नाम तैं नामी ॥ मोहि ॥ १ ॥ पदमावति धरनिदै रिधि तुमतें, जरत नाग जुग पामी। तुम संकटहर प्रगट सवनिमें, कर द्यानत शिवगामी ॥ मोहि० ॥२॥ . . . . . २४६। दिय दान महा सुख पावै ॥ दिये० ॥ टेक ॥ कूप नीर सम घर धन जानौं, करें व अकरें सड़ जावै ॥ . दिौं० ॥१॥ मिथ्याती पशु दानभावफल, भोगभूमि सुरवास बसावै । धानत गास अरध चौथाई, मनवांछित विधि कब पनि आवै ॥ दिय० ॥२॥ . V२४७ ए मेरे मीत ! निचीत कहा सोवै ॥ ए. ॥ टेक ॥ फूटी काय सराय पायकै, धरम रतन जिनं खोवै ।। ॥ ए० ॥१॥ निकसि निगोद मुकत जैवेको, राहविर्षे कहा जोवै ॥ ए० ॥२॥ द्यानतं गुरु जागुरू गुंकारें, खबरदार किन होवै. ॥ ए. ॥३॥ :... . २४८। " .: ... प्यारे नेमसों प्रेम किया रे ॥ प्यारे० ॥ टेक ॥ उनहीके अर, चरचें, परचें सुख होत. हिया रें। १ लोहा । २ पास-कौर । ३ जागरूक-जगनेवाले।...
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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