SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૮ जैनपदसंग्रह | " .,७२१: फूली बसन्त जहँ आदीसुर शिवपुर गये ॥ टेक ॥ भारतभूप बहत्तर जिनगृह, कनकमयी सव निरंमये ॥ फूली ० ॥ १ ॥ तीन चौवीस रतनमय प्रतिमा, अंग रंग जे जे भये । सिद्ध समान सीस सम सबके, अदभुत शोभा परिनये ॥ फूली० ॥ २ ॥ वालि आदि. आइंठ कोड़ मुनि, सबनि मुकति सुख अनुभये । तीन अठाई फागनि (१) खग मिल, गावैं गीत नये नये ॥ फूली ० ॥३॥ वसुं जोजन वसु पैड़ी (2) गंगा, फिरी बहुतसुरआलये । द्यानत सो कैलास नमौं हौं, गुन कापै जी वरनये ॥ फूली ० ॥ ४॥ : : . ★ h ७३ । · तुम ज्ञानविभव फूली वसन्त, यह मन मधुकर सुखसों रमन्त ॥ टेक ॥ दिन बड़े भये वैराग भावं, मिथ्यामत रजनीको घटाव ॥ तुम० ॥ १ ॥ बहु फूली फैली सुरुचि वेलि, ज्ञाताजन समता संग केलि ॥ तुम ० ॥ २ ॥ द्यानत वानी पिके मधुररूप, सुरंनरपशुआनँदघनसुरूप ॥ तुम० ॥ ३ ॥ . १ जहांः (कैलाशगिरिपर) । २ बनवाये । ३ साड़े तीन कोटि । आठ । ५ किसेस । ६ जावें । ७ भ्रमर । ८ रानि । ९. कोयल |
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy