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________________ जैनपदसंग्रह | १७ | राग - ख्याल । आतम जान रे जान रे जान ॥ टेक ॥ जीवनकी इच्छा करें, कबहुँ न मांगे काल । ( प्राणी ! ) सोई जान्यो जीव है, सुख चाहें दुख टाल || आतम० ॥ १ ॥ नैन चैनमें कौन है, कौन सुनत है बात । ( प्राणी ) देखत क्यों नहिं आपमें, जाकी चेतन जात ॥ जातम० ॥ २ ॥ बाहिर ढूंढ़ें दूर हैं, अंतर निपट नजीक । ( प्राणी ! ) ढूंढनवाला कौन है, सोई जानो ठीक ॥ आतम० ॥ ३ ॥ तीन भवनमें देखिया, आतम सम नहिं कोय । ( प्राणी ! ) द्यानत जे अनुभव करें, तिनक शिवसुख होय ॥ आतम० ॥ ४ ॥ १८ । राग - सोरठा । १० मन ! मेरे राग भाव निवार ॥ टेक ॥ राग चिक्कनतैं लगत है कर्मधूलि अपार ॥ मन० ॥ १ ॥ राग आस्रव मूल है, वैराग्य संवर धार । जिन न जान्यो भेद यह, वह गयो नरभव हार ॥ मन० ॥ २ ॥ दान पूजा शील जप तप, भाव विविध प्रकार | राग विन शिव सुख करत हैं, रागर्ते संसार ॥ मन० ॥ ३ ॥ वीतराग कहा कियो, यह बात प्रगट निहार । सोइ ... कर सुखहेत द्यानतं, शुद्ध अनुभव सार ॥ मन० ॥ ४ ॥
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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