SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनपदसंग्रह ५४. राग ख्याल । : अब नित नेमि नाम भजौ ॥ टेक ॥ सचा साहिब यह निज जानौ, और अदेव तजौ ॥ अव०॥ ॥ १ ॥ चंचल चित्त चरन थिर राखो विषयनतें वरजौ || अब० ॥ २ ॥ आननतें गुन गाय निरन्तर, पानने पांय जैजौ ॥ अव० ॥ ३ ॥ भूधर जो भवसागर तिरना, भक्ति जहाज सजौ ॥ अवना ५५. राग श्रीगौरी । ૨૦ " माया काली नागिनि जिन उसिया सब संसार हो" यह चाल । harir गागर जोजरी, तुम देखो चतुर विचार हो ॥ टेक ॥ जैसें कुल्हिया कांचकी, जाके विनसत नाहीं बार हो । कायां ॥ १ ॥ मांसमयी माटी लई अरु सानी रुधिर लगाय हो ! कीन्हीं करम कुम्हारने, जासों काहूकी नवसाय हो ॥ कांया० ॥ २ ॥ और कथा याकी सुन, यामैं अघ उरघ दश ठेह हो । जीव स लिल तहां थंभ रह्यौं भाई, अद्भुत अचरज येह १. मुखसे. २ हाथ जोड़कर. ३ नमन. करौ. ४ जरजरित, टूटी फूटी.
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy